आरती क्या हैं और कैसे करनी चाहिए
आरती को आरात्रिका अथवा आरार्तिक और नीराजन भी कहते हैं। आरती पूजा के अंत मे की जाती हैं। पूजन मे जो भी त्रुटि रह जाती हैं आरती से उसकी पूर्ति होती हैं । स्कंदपुराण मे कहा गया हैं। पूजन मंत्रहीन और क्रियाहीन होने पर भी नीराजन (आरती) कर लेने से उसमे सारी पूर्णता आ जाती हैं।
प्रथम दीपमाला के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हूर वस्त्र से ,चौथे आम और पीपल आदि के पत्तों से और पंचवे साष्टांग दंडवतः से आरती करे ।
आरती उतारते समय सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमा के चरणों मे से उसे चार बार घुमाएं दो बार नभिदेश मे एक बार मुखमंडल पर और सात बार समस्त अंगों पर घुमाये।
यर्थतः मे आरती पूजन के अंत मे इष्टदेव की प्रसन्नता के हेतु की जाती हैं इसमे इष्टदेव को दीपक दिखाने के साथ ही उनका स्तवन तथा गुणगान किया जाता हैं ।
- हाल ही में पूछे गए कुछ सवाल ?
- आरती कितनी बार घुमानी चाहिए ?
आरती का दीपक १४ बार घुमाने का प्रत्येक क्रम एक विशेष अर्थ से जुड़ा होता है:
- भगवान के चरणों का चार बार घुमाना: इससे भक्ति और श्रद्धा की भावना व्यक्त होती है।
- नाभि का दो बार घुमाना: इससे आत्मा के मध्य स्थिति का संकेत होता है।
- मुख की तरफ एक बार घुमाना: इससे बोली गई प्रार्थना और स्तुति का प्रतीक होता है।
- सिर से लेकर चरणों तक सात बार घुमाना: इससे सप्तचक्र और सप्तलोक के साथ संबंध होता है, जिससे भक्त दिव्य साधना में समर्थ होता है।
इस प्रकार, आरती के दीपक को घुमाने से भक्त का मानव-देव संबंध मजबूत होता है और उसका आत्मा सच्चे धार्मिक अर्थ में परिपूर्ण होता है।
2. शाम की आरती का समय ?
शाम की आरती का समय 5 बजे से 7 बजे के बीच होना चाहिए, इसे कभी भी आरती का समय माना जा सकता है। एक दिन में आप आरती को एक से पांच बार तक कर सकते हैं, जो आपकी आत्मिक शांति के लिए उपयुक्त हो। घरों में सामान्यत: दो बार आरती की जाती है - प्रातःकालीन आरती और संध्याकालीन आरती।
आरती का समय अपनी आराध्य देवता के आधार पर भी बदल सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आप इसे प्रतिदिन नियमित रूप से करते हैं ताकि आपका आध्यात्मिक संबंध मजबूत रहे।
आपको हमारी जानकारी कैसी लगी हमें फॉलो करें और हमें कमेंट में जरूर बताएं