धूर्त बिल्ली के न्याय
बहुत पुरानी बात हैं एक जंगल मे एक बहुत बड़े पेड़ के तने मे एक खोखला भाग था उस खोखले भाग मे कपींजल नाम का एक तितर रहा करता हैं हर रोज वह खाना ढूँढने कंपिजल अपने दोस्तो केसाथ दूर किसी खेत मे निकल गया और शाम को नहीं लौटा ।
जब कई दिनों तितर वापस नहीं आया तो खरगोश ने अपना घर बना लिया और वही रहने लगा लगभग दो से तीन हपतों बाद तितर वापस आया खा -खाकर वह मोटा हो गया था और लंबे सफर के करण बहुत थक भी गया था लौट कर उसने देखा की उसने घर मे खरगोश रह रहा हाँ यह देख कर उसे बहुत गुस्सा आ गया और उसने झल्लाकर खरगोश से कहा ये मेरा घर हैं निकलो यहा से तितर को इस तरह चिल्लते हुए देख खरगोश को भी गुस्सा आ गया और उसने कहा कैसा घर ? कोन सा घर जंगल का
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नियम हैं की जो जहा रह रहा हैं वही उसका घर हैं तुम यंहा रहते थे लेकिन अब यंहा मे रहता हूँ और इसलिए यह मेरा घर हैं इस तरह दोनों के बीच बहस शुरू हो गई तितर बार बार खरगोश को घर से निकलने के लिए कह रहा था और खरगोश अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा था तब तितर ने कहा की इस बात का फैसला हम किसी तीसरे को करने देते हैं उन दोनों की इस लड़ाई को दूर से एक बिल्ली देख रही थी उसने सोचा की अगर फैसले के लिए ये दोनों मेरे पास आ जाए तो मुझे इन्हे खाने का एक अच्छा अवसर मिल जाएगा यह सोच कर वह पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा मे बैठ गई और जोर जोर से ज्ञान की बाते करने लगी उसकी बातो कोसुनकर तितर और खरगोश ने बोला की यह कोई ज्ञानी लगती हैं और हमे फैसले के लिए इसके पास ही जाना चाहिए उन दोनों ने दूर से बिल्ली से कहा
बिल्ली मौसी तुम समझदार लगती हो हमारी मदद करो और जो भी दोषी होगा उसे तुम खा लेना । उनकी बात सुनकर बिल्ली ने कहा अब मैंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया हैं लेकिन मे तुम्हारी मदद जरूर करूंगी समस्या यह हैं की मे अब बूढ़ी हो गईं हूँ और इतने दूर से मुझे कुछ नहीं सुनाई दे रहा हैं क्या तुम दोनों मेरे पास आ सकते हो उन दोनों मेरे ने बिल्ली की बात पर भरोसा कर लिया और उसके पास चले गए बिल्ली ने तुरंत पंजा मारा और एक ही झपट्टे मे दोनों को मार डाला ।
कहानी से सिख
इस कहानी से हमे यह सिख मिलती हैं की हमे झगडा नहीं करना चाहिए और अगर झगडा भी हो जाए तो किसी तीसरे को बीच मे आने नहीं देना चाहिए ।
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